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लीची का उत्पादन

खुशखबरी: बिहार के मुजफ्फरपुर के अलावा 37 जिलों में भी हो पाएगा अब लीची का उत्पादन

खुशखबरी: बिहार के मुजफ्फरपुर के अलावा 37 जिलों में भी हो पाएगा अब लीची का उत्पादन

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि बिहार राज्य के अंदर सबसे ज्यादा मुजफ्फरपुर जनपद में लीची (Lychee; Litchi chinensis) का उत्पादन किया जाता है। मुजफ्फरपुर जनपद में 12 हजार हेक्टेयर भूमि में लीची का उत्पादन किया जा रहा है। बिहार के कृषकों के लिए एक अच्छी बात है, कि वर्तमान में बिहार के मुजफ्फरपुर के साथ बाकी जनपदों में भी कृषक लीची का उत्पादन कर सकते हैं। बिहार में करीब 5005441 हैक्टेयर जमीन लीची उत्पादन हेतु अनुकूल है। ऐसी स्थिति में यदि मुजफ्फरपुर के अतिरिक्त अन्य जनपद के कृषक भी लीची का उत्पादन करना चालू करते हैं। तब यह लीची का उत्पादन उनके लिए एक अच्छे आय के स्त्रोत की भूमिका अदा करेगा।

मुजफ्फरपुर के अलावा और भी जगह लीची का उत्पादन किया जाता है

आज तक की रिपोर्ट के अनुसार, मुजफ्फरपुर भारत भर में शाही लीची के उत्पादन के मामले में मशहूर है। साथ ही, लोगों का मानना है, कि केवल मुजफ्फरपुर की मृदा ही लीची की खेती के लिए बेहतर होती है। हालाँकि,अब ये सब बातें काफी पुरानी हो चुकी हैं। एक सर्वेक्षण के चलते यह सामने आया है, कि बिहार के 37 जनपदों के अंदर लीची का उत्पादन किया जा सकता है। इसका यह मतलब है, कि इन 37 जनपदों में लीची के उत्पादन हेतु जलवायु एवं मृदा दोनों ही अनुकूल हैं। सर्वे के अनुसार, इन 37 जनपदों के अंतर्गत 5005441 हेक्टेयर का रकबा लीची उत्पादन हेतु अनुकूल है। साथ ही, 2980047 हेक्टेयर भूमि बाकी फसलों हेतु लाभकारी है। ये भी पढ़े: अब सरकार बागवानी फसलों के लिए देगी 50% तक की सब्सिडी, जानिए संपूर्ण ब्यौरा

केवल बिहार राज्य में देश का 65 प्रतिशत लीची उत्पादन होता है

जानकारी के लिए बतादें, कि बिहार में लीची का सर्वाधिक उत्पादन किया जाता है। बिहार में किसान भारत में समकुल लीची की पैदावार का 65 फीसद उत्पादन करते हैं। परंतु, बिहार राज्य में भी सर्वाधिक मुजफ्फरपुर में शाही लीची का उत्पादन होता है। जानकारी के लिए बतादें कि 12 हजार हेक्टेयर के रकबे में लीची का उत्पादन किया जा रहा है। परंतु, राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र, मुजफ्फरपुर की तरफ से किए गए सर्वेक्षण के उपरांत बिहार राज्य में लीची के क्षेत्रफल में बढ़ोत्तरी देखी जाएगी। राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, राज्य में 1,53,418 हेक्टेयर रकबा लीची के उत्पादन हेतु सर्वाधिक अनुकूल है।

ये मुजफ्फरपुर से भी अधिक लीची उत्पादक जनपद हैं

सर्वेक्षण के मुताबिक, पश्चिम चंपारण, मधुबनी, कटिहार, अररिया, बांका, औरंगाबाद, जमुई, पूर्णिया, पूर्वी चंपारण, मधेपुरा और सीतामढ़ी में मुजफ्फरपुर से भी ज्यादा लीची का उत्पादन हो सकता है। इन जनपदों की मृदा और जलवायु मुजफ्फरपुर से भी ज्यादा लीची उत्पादन हेतु अनुकूल है। अगर इन समस्त जनपदों में लीची का उत्पादन चालू किया जाए तो भारत में भी चीन से ज्यादा लीची की पैदावार होने लगेगी। साथ ही, राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के निदेशक डॉ. विकास दास के मुताबिक, तो किसान अधिकांश पारंंपरिक धान- गेहूं की भांति फसलों का उत्पादन करते हैं। इसकी वजह से प्रति हेक्टेयर में 50 हजार रुपये की आय होती है। हालांकि, लीची की खेती में परिश्रम के साथ- साथ लागत की भी ज्यादा जरूरत होती है। वहीं यदि किसान धान-गेहूं के स्थान पर लीची का उत्पादन करते हैं, तो उनको कम खर्चा में काफी अधिक लाभ मिलेगा। साथ ही, उत्पादकों को खर्चा भी काफी कम करना होगा।
लीची की इस किस्म से बंपर पैदावार और आमदनी हो सकती है

लीची की इस किस्म से बंपर पैदावार और आमदनी हो सकती है

बिहार राज्य में सर्वाधिक लीची का उत्पादन किया जाता है। यहां वर्ष 2021-22 में 308.1 मीट्रिक टन लीची की पैदावार हुई थी। बिहार राज्य के लीची उत्पादक किसान भाइयों के लिए एक बड़ी खबर है। राज्य सरकार लीची की नवीन किस्म का उत्पादन करने वाले किसानों को प्रोत्साहित कर रही है। विशेष बात यह है, कि सरकार द्वारा राज्य में लीची की पैदावार में वृद्धि करने हेतु यह कदम उठाया गया है। दरअसल, राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र द्वारा एक ऐसी किस्म तैयार की है, जिसका उत्पादन करने पर लीची का उत्पादन काफी बढ़ जाएगा। इससे प्रदेश में लीची की पैदावार को बढ़ावा मिलेगा। मीड़िया खबरों के मुताबिक, बिहार राज्य में अकेले 43 फीसदी लीची का उत्पादन किया जाता है। मुजफ्फरपुर की शाही लीची तो अपने स्वाद की वजह से पूरे विश्व में मशहूर है। यही कारण है, कि बिहार सरकार विशेषकर लीची की प्रजाति गंडकी योगिता, गंडकी लालिमा एवं गंडकी संपदा की खेती करने के लिए किसानों को बढ़ावा दिया जा रहा है। वहीं, बिहार के कृषि मंत्री कुमार सर्वजीत ने बताया है, कि राज्य सरकार और एनआरसीएल (मुजफ्फरपुर) लीची उत्पादन, गुणवत्ता एवं भंडारण में सुधार करने हेतु एकजुट होकर कार्य कर रही है। यह भी पढ़ें: खुशखबरी: बिहार के मुजफ्फरपुर के अलावा 37 जिलों में भी हो पाएगा अब लीची का उत्पादन मुजफ्फरपुर की प्रसिद्ध शाही लीची को जीआई टैग प्राप्त हो चुका है। यह अपनी अनोखी सुगंध की वजह से जानी जाती है। इसके अंदर ज्यादा रस एवं सामान्य से छोटी गुठली विघमान रहती है।

18 से 23 फीसद फसल क्षतिग्रस्त हो चुकी है

बतादें, कि लीची एक नॉन-क्लिमैक्ट्रिक फल है। नॉन-क्लिमैक्ट्रिक फलों की विशेषता यह है, कि यह सिर्फ पेड़ पर लगे रहने के दौरान ही पकते हैं। अगर पेड़ से उसको तोड़ लिया जाए, तो इसका पकना समाप्त हो जाता है। ऐसी स्थिति में पके हुए लीची के फलों को ही पेड़ों से तोड़ा जाता है। साथ ही, ऐसे में इसके जल्दी खराब होने की संभावना रहती है। इसलिए इसको दीर्घ काल तक भंडारित नहीं किया जा सकता है। साथ ही, इसकी कटाई के उपरांत 18 से 23 फीसद तक फसलों को हानि पहुँचती है। यही कारण है, कि सरकार किसानों से लीची की नई किस्म का उत्पादन करने की अपील कर रही है।

2021-22 में लीची की पैदावार 308.1 मीट्रिक हुई थी

अधिकारियों के मुताबिक, गंडकी संपदा लीची काफी समय में पकती है। यह जून माह के बीच तक पक कर तैयार हो जाती है। गंडकी सम्पदा लीची का वजन 35-42 ग्राम तक होता है। इसका गूदा मलाईदार-सफेद, मुलायम एवं रसदार होता है। इसकी सुगंध भी काफी अच्छी होती है। इसके एक पेड़ से 140 किलो तक लीची अर्जित कर सकते हैं। इसी प्रकार ‘गंडकी योगिता’ भी धीमी गति से उगती है, जो गर्मी की लहरों को झेल सकती है। बिहार में साल 2021-22 में लीची उत्पादन 308.1 मीट्रिक हुआ था। वहीं, साल 2020-21 में 308 मीट्रिक टन पैदावार हुई थी। बतादें कि शाही लीची को 2018 में जीआई टैग हांसिल होने से इसकी संपूर्ण विश्व में मांग बढ़ गई है।